Wednesday, February 1, 2012

हम भ्रष्टों के भ्रष्ट हमारे, कितने अच्छे मुख्यमंत्री हमारे



शिवराज की नाक के नीचे भ्रष्टाचारियों की फौज
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अपनी म.प्र. यात्रा में आडवानी ने भ्रष्टाचार को लेकर जितनी बातें कहीं, भ्रष्टाचार के जितने नुकसान गिनाए ओर म.प्र. में भ्रष्टाचार को खत्म कर सुशासन को लेकर जितनी भी बातें कहीं, उनमें से यदि एक पर भी म.प्र. में अमल हो रहा होता तो शायद यहां के आधे से ’यादा नौकरशाह और शिवराज मंत्रिमंडल के करीब दो दर्जन मंत्री सलाखों के पीछे होते। लेकिन ऐसा नहीं हैं। भ्रष्टाचार पर अपनी विद्वता का परिचय देने वाले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे ही भ्रष्टाचारियों की पूरी फौज खड़ी है। लेकिन ये उन्हें दिखाई नहीं देती। अरविंद-टीनू जोशी के घर मिले तीन करोड़ नगद के बाद तो किसी सबूत या बयान की जरूरत ही थी लेकिन शिवराज सरकार इन दोनों भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई से कन्नी काट रही है। इसी तरह दो दर्जन से ’यादा आईएएस अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त मामले दर्ज है लेकिन सरकार किसी किसी भी मामले कार्रवाई नहीं चाहती। लिहाजा कई मामलों में न अभियोजन की स्वीकृति दी जा रही है और न ही दूसरे मामलों में कार्रवाई को रफ्तार बढ़ाने की  कोई कोशिश हुई है।

म.प्र. में इन दिनों जनता को गुमराह करने का काम जोरों पर चल रहा है। ये काम कोई और नहीं, बल्कि खुद प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही कर रहे है। हाल ही में भा.ज.पा. के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार पर केंद्रित जनचेतना यात्रा म.प्र. के अलग-अलग शहरों से गुजरी है। म.प्र. यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री आडवाणी के साथ रहे और खूब भाषण भी दिए। अपने भाषणों में उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर जितनी बात कहीं, भ्रष्टाचार के नुकसान गिनाए और म.प्र. में भ्रष्टाचार को खत्म कर सुशासन को लेकर जितनी भी बातें कहीं, उनमें से यदि एक पर भी म.प्र. में अमल हो रहा होता तो शायद यहां के आधे से ’यादा नौकरशाह और शिवराज मंत्रिमंडल के करीब दो दर्जन मंत्री सलाखों के पीछे होते।  लेकिन ऐसा नहीं हैं। भ्रष्टाचार पर अपनी विद्वता का परिचय देनेे वाले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे ही भ्रष्टाचारियों की पूरी फौज खड़ी है। लेकिन ये उन्हें दिखाई नहीं देती। अरविंद-टीनू जोशी के घर मिले तीन करोड़ नगद के बाद तो किसी सबूत या बयान की जरूरत ही थी लेकिन शिवराज सरकार इन दोनों भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई से कन्नी काट रही है। 

इसी तरह दो दर्जन से ’यादा आईएएस अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त मामले दर्ज है लेकिन सरकार किसी किसी भी मामले कार्रवाई नहीं चाहती। लिहाजा कई मामलों में न अभियोजन की स्वीकृति दी जा रही है और न ही दूसरे मामलों में कार्रवाई को रफ्तार बढ़ाने की  कोई कोशिश हुई है। यही हाल शिवराज के मंत्रियों का भी है। 21 मंत्रियों पर विभिन्न अदालतों में भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों में मामलें चल रहे है लेकिन शिवराज और उनकी पार्टी बड़बोले प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा अपने मंत्रियों को दूध का धुला साबित करने पर तुले हुए है। यही सबसे बड़ा अंतर है हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कथनी और करनी का। इस अंतर को और अ‘छे से समझना हो तो म.प्र. के निर्माण कार्यों में होने वाली ठेकों की नीलामी पर गौर कर लेना चाहिए, जहां दोनों हाथों से न सिर्फ शिवराज के रिश्तेदारों को उपकृत किया जा रहा है बल्कि उनके अगल-बगल रहने वाले लोग भी दोनों हाथों से मलाई खा रहे हैं।  

कमीशनबाजी और शिवराज शिवराज सरकार को दिखाने का बड़ा रोग लगा हुआ है। दर असल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके कुछ चहेते अफसरों और व्यापारियों सहित कुछ उद्योगपतियों ने मार्केटिंग फंदा दिया है कि जरा सा करो और बड़ा सा दिखाओ। इसी पर अमल करते हुए सरकार का हर आयोजन किसी भव्य समारोह से कम नहीं होता जिस पर लाखों रूपए पानी की तरह बहाए जाते हैं। भोपाल में तो इसकी बानगी आए दिन देखी जा सकती है, जिलों में महीनों में ऐसे दो-तीन कार्यक्रम हो ही जाते है। इन्हीं कार्यक्रमों के आयोजन में जमकर कमीशनबाजी होती है और भ्रष्टाचार किया जाता है लेकिन शिवराज यहां अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं। इस पट्टे को उतारे बिना ही वह इन कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार को दूर करने की बातें भी कह देते है। ऐसे में कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार सिर्फ बातें, काम कुछ नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक दो नहीं हजारों बयान आ चुके है। सरकारी बैठकों में उन्होंने अफसरों को दिए, राजनैतिक कार्यक्रमों में इस पर भाषण दिया और राष्ट्रीय स्तर के कई मंचों पर भी इस मामले में अपनी बात रखी और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था पर इतना बोला कि सुनने वाले भी दंग रह गए। लोगों को लगा कि म.प्र. में शायद व्यवस्था पादशर््ी और सुशासित है लेकिन कलई एक-दो बार नहीं बार-बार तब खुल जामी है जब अखबारों में प्रदेश के अफसरों और नेताओं के भ्रष्टाचार के नए-नए किस्से छपते हैं। 

शिवराज ने भ्रष्टाचार को लेकर तिजनी बातें की, वायदे किए और घोषणाएं की उनमें से यदि कुछ पर भी अमल हो जाता तो शायद सुधार भी दिखता लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस मुद्दे अपना सीना फुलाने के लिए उन्होंने दो साल पहले विशेष न्यायालय और भ्रष्टाचार विरोधी कानून विधान सभा में पास कराकर केन्द्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजा है। आज तक इसका अता पता नहीं है। आए दिन सरकार बयान जारी करती हहै कि मुख्यमंत्री इन कानूनों को मंजूर कराने के लिए केंद्रीय मंत्रियों और राष्ट्रपति से गुहार लगा रहे है लेकिन ये बात खुद शिवराज ही जानते है कि इन कानूनों को पास कराने के लिए उन्होंने कितनी ईमानदारी से कोशिश की हैं। शिवराज सरकार में दर्जनों अफसरों पर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे है लेकिन इनक उनकी सरकार हमेशा ही भ्रष्टाचारियों की पैरोकार रही है। 

इन अफसरों को बचाने के लिए उनके पास तमाम बहाने हैं। ये है शिवराज का स (कु) शासन म.प्र. में 10 आईएएस अधिकारी भ्रष्टाचार में फंसे हैं। एक-एक आईपीएस और आईएफएस भी इसमें शामिल है। सराकर ने दो अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति ईओडब्ल्यू को दी। एक अधिकारी डी.पी. तिवारी को तो मुख्यमंत्री ने उपकृत कर अपना ओएसडी तक बना लिया है। यह अधिकारी इन दिनों मुख्यमंत्री निवास में बैठते हे और शिवराज के राइट हैंड है। ब्यूरो ने सरकार से पांच साल में दर्ज 5& प्रकरणों में अदालत में चालान प्रस्तुत करने की स्वीकृति मांगी थी। विधानसभा में यह बात मुख्यमंत्री स्वीकार की चुके हैं। इनमें प्रमुख रूप से एमएस मूर्ति,एमके सिंह, राकिंकर गुप्ता, यू के सामल, डीपी तिवारी एवी सिंह एसएल अली, पी नरहरि, मुक्तेश वाष्र्णेय, राजेन्द्र चतुर्वेदी, एएस तिवारी शामिल हैं। अपनी मार्के टिंग पर खजाना लुटा रहे है शिवराज किसी तरह से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही शिवराज सिंह चौहान को जननायक बनने का भूत सवार है। लगातार दूसरी बार सत्ता आने के बाद के ’योति बसु बनने का सपना संजो बैठे है। जिन्होंने पश्चिम बंगाल में लगातार सालों तक सरकार चलाई। 

अपने इसी सपने को साकार करने के लिए शिवराज हर वो काम करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वे जनता का दिल जीत सकें। ऐसा हो भी जाता, यदि वे ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाते न तो उनके कामों ईमानदारी है ओर न ही उनकी बातों में।भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद से शिवराज की जुबान पर भी भ्रष्टाचार का मुद्दा चढ़ गया है। इसके बाद उनके इतने बयान आ चुके हैं, जिन्हें सुनते वक्त ऐसा लगता है कि म.प्र. में भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज ही नहीं बचेगी, लेकिन जब सरकारी ऐजेसियों के छापे के बाद ही हकीकत से पर्दा उठता है तो सामने आ जाता है कि मुख्यमंत्री कितनी ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। उनकी बातों और हकीकत में कितना अंतर है, ये देखने के बाद साबित हो जाता है कि वे जनता को सिवाए लंभाने के कोई काम नहीं कर रहे है। 

जननायक बनने के लिए वे झूठ बोलने की हद को पार कर चुके हैं। जनता को मूर्ख समझने की उनकी वृति का ही नतीजा है कि राजधानी सहित कुछ बड़े शहरों में सरकार की तारीफ सुनने के बाद वे भूल जाते है कि ग्रामीण अंचलों में लोग आज भी शिव-राज में पनपे भ्रष्टाचार की सजा भुगत रहे हैं। न तो बिजली मिल रही है और न पानी। आने-जाने की सडक़े तक नहीं है। कहा जा  रहा है कि केन्द्र से आने वाला हजारों रूपए कहां जा रहे है? यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा शिवराज अपनी मार्केटिंग करने में लुटा रहे है। मुख्यमंत्री निवास में होने वाले हर करर्यक्रम पर 25 से 50 लाख रूपए खर्च होते हैं। इतनी बड़ी रकम में गरीब परिवारों की हजारों बेटियों की शादी हो सकती है। कुपोषण से मर रहे ब"ाों को बहुत भोजन मिल सकता है और दो जून की रोटी के लिए सडक़ों पर पन्नियां बीन रहे हजारों ब"ाों को अ‘छी शिक्षा मिल सकती है। 



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